राजस्थान के बारां जिले के एक गांव में बड़ी संख्या में गिद्धों को देखे जाने से पर्यावरण प्रेमियों में खुशी की लहर है। वर्ष 2008 के बाद विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके ये पक्षी अब हाड़ौती क्षेत्र में फिर दिखाई देने लगे हैं।
गिद्ध मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखते हैं और किसानों के लिए भी लाभकारी माने जाते हैं। ये न तो शिकार करते हैं, न ही इंसानों को कोई नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी खास बात यह है कि ये 3 किलोमीटर दूर से भी मृत पशु की गंध पहचान सकते हैं।
गिद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे उड़ने वाले पक्षियों में से हैं। 1973 में रूपेल्स वल्चर (Ruppell’s Vulture) ने लगभग 37,000 फीट (11,300 मीटर) की ऊंचाई पर उड़ान भरी थी, जो माउंट एवरेस्ट से भी ऊंची है।
विश्व में गिद्धों की 23 प्रजातियां हैं, जिनमें से 9 भारत में पाई जाती हैं। इनमें भारतीय सफेद पीठ वाला गिद्ध, हिमालयी ग्रिफन, और इजिप्शियन वल्चर प्रमुख हैं।
गिद्ध साल में केवल एक अंडा देते हैं। यदि इनका सही संरक्षण किया जाए, तो इनकी संख्या में हर साल 10 से 20 तक की वृद्धि संभव है।
गिद्धों की घटती संख्या का मुख्य कारण पशुओं को दी जाने वाली डाइक्लोफेनाक जैसी दवाएं हैं, जो उनके शरीर में जहर का असर कर मृत्यु का कारण बनती हैं। इसी को देखते हुए भारत में डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है और गिद्ध संरक्षण के लिए “Vulture Safe Zones” बनाए गए हैं।
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