जयपुर का गोविंद देव जी मंदिर श्रीकृष्ण-राधा को समर्पित यह ऐतिहासिक मंदिर विशेष स्थापत्य और भक्ति के लिए प्रसिद्ध है-
जयपुर, राजस्थान में स्थित गोविंद देव जी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण (गोविंद देव जी) और राधा रानी को समर्पित एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर सिटी पैलेस परिसर के जय निवास बाग में स्थित है और अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
विशेष बात यह है कि यह मंदिर पारंपरिक मंदिरों की तरह ऊँचा शिखर नहीं रखता, बल्कि बिना शिखर के अनूठी स्थापत्य शैली में निर्मित है। मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी और रथयात्रा जैसे त्योहारों पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है।
ऐसा माना जाता है कि गोविंद देव जी की प्रतिमा वृंदावन से लाई गई थी और स्वयं जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा इस मंदिर में स्थापित की गई थी। मंदिर में प्रतिदिन आठ झांकियों के दर्शन होते हैं, जिनमें ठाकुर जी को भिन्न-भिन्न भोग और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी चांदी के रथ पर विराजमान हुए गौर गोविंद, चार भव्य परिक्रमा के साथ हुआ विग्रह का नगर दर्शन-

जयपुर नगर के आराध्य ठाकुर श्री गोविंद देवजी मंदिर में 27 जून,शुक्रवार को रथयात्रा महोत्सव श्रद्धा और दिव्यता के साथ संपन्न हुआ। सुबह मंगला झांकी के दर्शन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, जिसके बाद ठाकुर गोविंद देव जी का शास्त्रीय विधियों से अभिषेक किया गया।
महोत्सव के दौरान ठाकुर जी को नवीन लाल रंग के लप्पा जामा वस्त्र पहनाए गए और उन्हें विशेष अलंकारों व पुष्प मालाओं से सजाया गया। पंचदाल भिजौना और ऋतुफलों का विशेष भोग अर्पित कर पूजा-अर्चना की गई।सुबह 6 बजे से मंदिर में गौड़ीय वैष्णव मंडली और मंदिर परिवार द्वारा मंगलाचरण एवं महामंत्र संकीर्तन किया गया, जिससे पूरा परिसर भक्तिरस में डूब गया।
महोत्सव के मुख्य आकर्षण में मंदिर के महंत अंजन कुमार गोस्वामी द्वारा गौर गोविंद श्री विग्रह को चांदी निर्मित रथ पर विराजित किया गया। रथ को मंदिर परिसर में चार भव्य परिक्रमा कराई गईं, जिसमें श्रद्धालु हाथों में झांझ-मंजीरे लेकर कीर्तन करते चले।इसके पश्चात श्री विग्रह को पुनः रथ सहित गर्भगृह में विराजित किया गया। आयोजन का समापन धूप आरती और ठाकुर जी के दर्शन के साथ हुआ।
रथयात्रा महोत्सव के इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित रहे। भक्तों ने ठाकुर श्री जी के दिव्य स्वरूप के दर्शन कर स्वयं को कृतार्थ अनुभव किया। रथ यात्रा के समय वातावरण अत्यंत भव्य, भावुक और भक्तिमय हो जाता है। इस समय प्रभु को अपने बीच देख कर भक्तो की आँखे नम हो आती है। इस समय वहां हर एक व्यक्ति प्रभु को निहारने में लीन रहते है। भक्तों को प्रभु के दीव्य दर्शन होने के बाद आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है और उन भक्तों को भीड़ में भी एकांत का अनुभव होता है।
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