Sunday, July 6, 2025
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अजमेर एमडीएसयू की सेवा से 6 जिलों के छात्रों को घर बैठे मिले दस्तावेज़

अजमेर स्थित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (एमडीएसयू) ने छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक बड़ी डिजिटल पहल की है, जिससे अजमेर सहित छह जिलों के 450 से ज्यादा कॉलेजों में पढ़ने वाले सैकड़ों छात्रों को राहत मिली है। यूनिवर्सिटी ने डुप्लीकेट मार्कशीट और माइग्रेशन सर्टिफिकेट की ऑनलाइन फीस जमा करने और दस्तावेजों को सीधे छात्रों के घर तक पहुंचाने की सेवा शुरू कर दी है।

ऑनलाइन सुविधा से बिचौलियों का खेल खत्म-

इस नई व्यवस्था से छात्रों को न सिर्फ लंबी कतारों और घंटों इंतजार से मुक्ति मिली है, बल्कि विश्वविद्यालय परिसर में वर्षों से सक्रिय बिचौलिया ग्रुप से भी निजात मिल गई है। पहले कैश काउंटर 3 बजे के बाद बंद हो जाता था, जिससे दूर-दराज से आने वाले छात्र दस्तावेज नहीं बनवा पाते थे। ऐसे में बिचौलिये छात्रों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए मोटी रकम लेकर काम करवाते थे।

25 दिन में मिले 1,000 से ज्यादा आवेदन-

यूनिवर्सिटी की इस सुविधा को छात्रों से शानदार रिस्पॉन्स मिल रहा है। मुख्य परीक्षा नियंत्रक डॉ. सुनील टेलर के अनुसार, केवल 25 दिनों में ही 1,000 से अधिक आवेदन मिल चुके हैं और यह प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है।

40 रुपए पोस्टल चार्ज पर घर पहुंचेगा दस्तावेज सर्टिफिकेट-

छात्र अब यूनिवर्सिटी आए बिना, घर बैठे ऑनलाइन फीस जमा कर सकते हैं और मात्र 40 रुपए पोस्टल चार्ज देकर अपने डुप्लीकेट दस्तावेज घर पर मंगवा सकते हैं। हालांकि, यदि किसी छात्र को दस्तावेज उसी दिन चाहिए तो वह विश्वविद्यालय से आकर इन्हें प्राप्त कर सकता है।

जल्द शुरू होगा ट्रांसक्रिप्ट सिस्टम-

“डॉ. टेलर ने जानकारी दी कि जल्द ही यूनिवर्सिटी द्वारा ट्रांसक्रिप्ट सर्टिफिकेट भी ऑनलाइन ही मंगवाने की सुविधा शुरू की जाएगी। यह दस्तावेज खासतौर पर विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए आवश्यक होता है, जिसमें डिग्री के सभी वर्षों का विवरण एक ही डॉक्यूमेंट में होता है।”

5 हजार से ज्यादा आवेदन एक सीजन में-

हर साल विश्वविद्यालय से 3 लाख से अधिक छात्र पढ़ाई पूरी करते हैं, जिनमें से हजारों छात्रों को डुप्लीकेट दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है। विशेष रूप से एडमिशन डुप्लीकेटसीजन में इनकी मांग कई गुना बढ़ जाती है और एक सीजन में लगभग 5 हजार आवेदन मिलते हैं।यह पहल न केवल छात्रों की सुविधा के लिए एक बड़ा कदम है, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की पारदर्शिता और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की दिशा में एक अहम प्रयास भी साबित हो रही है।

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