राजस्थान के कोटा जिले में स्थित 350 साल पुराने जगदीश मंदिर में एक अनोखी धार्मिक परंपरा का निर्वहन किया गया। यहां हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान को 14 दिन का विश्राम दिया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बीमारी अवकाश’ कहा जाता है। मान्यता है कि भीषण गर्मी और आम रस के सेवन से भगवान की तबीयत बिगड़ जाती है, जिसके चलते उन्हें आराम की आवश्यकता होती है।
बुधवार को मंदिर परिसर में पारंपरिक आस्था और श्रद्धा के साथ स्नान यात्रा महोत्सव का आयोजन हुआ। भोर से ही मंदिर में धार्मिक रस्में शुरू हो गईं। 51 पवित्र कलशों और पंचामृत से भगवान का विशेष अभिषेक किया गया। इसके बाद 200 किलो आम रस का भोग अर्पित किया गया। शाम को भोग के उपरांत रात 9 बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए, और भगवान को ‘आराम काल’ में प्रवेश करा दिया गया।
इस अवधि में भगवान के आराम में किसी तरह का विघ्न न पड़े, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। मंदिर की घंटियां और झालरें कपड़े से ढंक दी जाती हैं ताकि कोई आवाज न हो। प्रतिदिन पुजारी भगवान का ‘स्वास्थ्य परीक्षण’ करते हैं। उनके आरोग्य के लिए विशेष औषधीय काढ़ा—जिसमें दूध और काली मिर्च होती है—चढ़ाया जाता है।
इन 14 दिनों में मंदिर का मुख्य गर्भगृह आम दर्शन के लिए बंद रहता है, और पुजारियों के अलावा किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती। यह परंपरा बीते तीन सदी से अधिक समय से बिना रुके निभाई जा रही है, जो कोटा की धार्मिक विरासत और आस्था की मिसाल मानी जाती है।
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