राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में एक बार फिर गायों को सामूहिक रूप से चराने की पुरानी परंपरा को जीवित किया जा रहा है। पंचायती राज विभाग ने एक नई पहल के तहत “गांव-ग्वाल योजना” की शुरुआत करने की तैयारी की है जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वच्छता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि बेसहारा गायों के संरक्षण की दिशा में भी ठोस कदम उठाया जाएगा।
पुरानी परंपरा को फिर से मिलेगा जीवन
इस योजना की पायलट शुरुआत कोटा जिले के रामगंजमंडी क्षेत्र से की जाएगी, जो कि राज्य के मंत्री मदन दिलावर का गृह क्षेत्र भी है। इस योजना के तहत प्रत्येक गांव में स्थानीय ग्वालों को नियुक्त किया जाएगा, जो बेसहारा व ग्रामीणों की गायों को एकत्र कर चारागाहों में सामूहिक रूप से चराने का कार्य करेंगे।
गांव-ग्वाल योजना की होगी शुरुआत
ग्राम पंचायतें ग्वालों को मानदेय (पारिश्रमिक) प्रदान करेंगी। वहीं, पशुपालक अपनी मर्जी से योजना में पंजीकरण करवाकर अपनी गायों को ग्वालों के साथ भेज सकेंगे। इस प्रयास से गांवों में गायों को सड़कों पर खुला छोड़ने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगेगी।
योजना के फायदे :
- गांवों में गंदगी और सड़कों पर फैले गोबर की समस्या में कमी आएगी।
- फसलों को नुकसान से किसान बचेंगे।
- आवारा गायों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की आशंका घटेगी।
- प्लास्टिक खाने से होने वाली गायों की मौतों पर लगाम लगेगी।
रात में रख-रखाव के लिए बनेगी गोशाला
बेसहारा गायों के लिए रात को ठहरने के लिए नई गोशालाएं (काऊ हाउस) स्थापित की जाएंगी। इसके साथ ही चारागाह ग्राम समितियों को पुनः सक्रिय करते हुए चरागाह भूमि के संरक्षण के निर्देश भी विभाग की ओर से जारी किए जा चुके हैं।
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